Friday, May 28, 2010

परख तो लूं तेरा प्यार





जब राधा और कृष्ण साथ रह सकते हैं, तो कोई मनुष्य क्यों नहीं? आपको भले ही तर्क अजीब लगे परंतु देश के सर्वोच्च न्यायालय की लिव इन रिलेशनशिप की नैतिकता को लेकर यही टिप्पणी थी। हालांकि सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या शीर्ष न्यायालय की यह टिप्पणी बिना शादी के साथ रहने के चलन के साथ जुड़ी सामाजिक अस्वीकृति को समाप्त कर पाएगी।

[जियो और जीने दो]
आयुष और साक्षी जैसे बहुत सारे लोगों के लिए एक साथ रहना बहुत सुविधाजनक व्यवस्था है। इसी तरह बचपन के दोस्त सॉफ्टवेयर इंजीनियर सुमित श्रीवास्तव और मीडिया प्रोफेशनल स्मिता पांडे को नौकरी के लिए दिल्ली जाना पड़ा, जहां इन दोनों ने साथ रहने का निर्णय लिया। यह फैसला हमनें जल्दबाजी में नहीं खूब सोच-समझकर लिया है। चार साल से इस रिश्ते को निभाने वाली स्मिता कहती हैं कि किसी भी रोमांटिक रिश्ते में आप कभी भी अपने पार्टनर को पूरी तरह से समझ नहीं पाते है। मैंने अपने कई दोस्तों को प्रेम विवाह करने के बाद भी अलग होते देखा है। लिव इन रिलेशनशिप में आप अपने पार्टनर के गुणों और कमियों के बारे में बाखूबी जान लेते हैं। इस रिश्ते में शादी की अपेक्षा कम दबाव होता है और अगर दोनों में न निभे, तो रास्ते अलग किए जा सकते है। स्मिता के अनुसार इस तरह से एक साथ रहना जोड़े को अधिक जिम्मेदार बना देता है। सप्ताहांत का प्रयोग मिलकर घर के कामों को निबटाने के लिए होता है।
वह हँसते हुए कहती है, साफ-सफाई, खाना बनाना और लांड्री जैसे सभी काम हम दोनों मिल कर करते है। सुमित बहुत अधिक जिम्मेदार हो गया है। मुझे नहीं लगता था कि वह इतना अधिक बदल जाएगा। उनका मानना है कि कानूनी सहयोग से इस तरह के रिश्तों को देर से ही सही सामाजिक स्वीकार्यता मिल जाएगी। सुमित कहते है, अभी लोग हमारे साथ ऐसा व्यवहार करते हैं, जैसे हम कोई असामाजिक तत्व हों। कई बार तो वे हमें देखकर दबी हँसी हँसते है।

[मकान मालिक से जंग]
आईआईटी से पढ़ाई और मोटे वेतन के बावजूद भी निशा मेनन और अमित कपूर के लिए ही किराए के मकान की तलाश आसान नहीं थी। आईआईटी खड़गपुर में पढ़ाई के दौरान चल रहे लंबे अफेयर के बाद निशा और अमित साथ रहने के लिए दिल्ली आ गए। निशा कहती है, हमने शादीशुदा होने का झूठ बोला। इसके अतिरिक्त किसी रिश्तेदार के आने पर भी हम दोनों को काफी जुगत लगानी पड़ती थी। अमित कहते है, जितनी भी बार भी निशा के अभिभावक दिल्ली आए मुझे अपना सामान पैक करके ऑफिस में सोना पड़ा। हाल ही में मेरे चचेरे भाई की शादी के दौरान मेरे सभी रिश्तेदार जानना चाहते थे कि मैं कहां रहता हूं? बड़ी मुश्किल से मैंने उनके सवालों को टाला।
एमएनसी में कंसलटेट अमित और प्रोडक्शन कंपनी की क्रिएटिव हेड निशा दो साल से साथ रह रहे है। जल्द ही निशा के साथ शादी के बंधन में बँधने जा रहे अमित मानते है कि लिव इन अनुकूलता को परखने का सबसे अच्छा माध्यम है।

[बदलाव की बयार]
क्या हम आने वाले समय में कुछ और जोड़ों को लिव इन रिलेशनशिप में देखने जा रहे है? बहुत सारे समाज विज्ञानी और मनोविज्ञानी कहते है कि आर्थिक स्वतंत्रता और पश्चिमी जीवनशैली के प्रभाव के चलते इस तरह के जोड़ों की संख्या लगातार बढ़ रही है। समाजविज्ञानी शिव विश्वनाथन कहते है, भले ही समाज में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन न आया हो, परंतु समाज का नजरिया कुछ हद तक बदला है। कानूनी स्वीकार्यता मिलने से भी ऐसे जोड़ों की संख्या बढ़ेगी। मनोविज्ञानी और लाइफस्टाइल विशेषज्ञ डॉ. रचना सिंह कहती है, इन दिनों बहुत सारे युवा लिव इन रिलेशनशिप का विकल्प चुन रहे है। मुझे लगता है कि महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है। इसके अतिरिक्त लोगों की सोच में भी बदलाव आया है। अधिकतर जोड़े लिव इन का चुनाव सुविधाजनक होने के कारण करते है। दूसरा शादी के पहले एक साथ रहकर देख लेना चाहते हैं कि वे एक-दूसरे के लिए बने हैं या नहीं। वह यह भी जोड़ती है कि सलाम नमस्ते और वेकअप सिड जैसी फिल्मों ने भी लिव इन रिलेशनशिप का बिल्कुल ताजा रूप सामने रखा है।
डॉ. रचना इसके नुकसानदायक पक्ष के बारे में जोड़ना नहीं भूलतीं है। उनके अनुसार कभी-कभी समर्पण की कमी के चलते इस रिश्ते को शादी की तरह चलाने के लिए कड़े प्रयास नहीं किए जाते है। यही कारण है कि बहुत छोटी-छोटी बातें भी ब्रेकअप का कारण बन जाती है। जबकि शादी में तलाक लेना आसान नहीं होता है। यद्यपि एक प्रोडक्शन हाउस के असिसटेट डायरेक्टर गौरव और पब्लिक रिलेशन प्रोफेशनल मीनाक्षी सिंह इस बात से सहमत नहीं है। गौरव कहते है, मुझे लगता है कि शादी की तरह ही इस रिश्ते में समर्पण होता है। हम घर के खर्र्चो के साथ ही काम भी मिल-बांटकर करते है।

[आर्डर-आर्डर]
कुछ समय पहले अभिनेत्री खुशबू द्वारा विवाहपूर्व सेक्स को लेकर की गई विवादास्पद टिप्पणी के पक्ष में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि वयस्कों के बीच इस तरह के संबंधों में कुछ भी अवैध नहीं है, परंतु क्या कानूनी स्वीकार्यता जमीनी हकीकत को बदल देगी। अभिनेत्री खुशबू की सलाहकार पिंकी कहती है, सभ्य समाज इस टिप्पणी पर गौर जरूर करेगा। सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता कामिनी जायसवाल कहती हैं, समाज में जागरूकता आए बिना किसी भी कानून का कोई फायदा नहीं है। वह कहती है, कानून से कोई फर्क नहीं पड़ता है। लोगों की सोच को बदलने की आवश्यकता है। वह कहती है, घरेलू हिंसा कानून के अंतर्गत लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को भी रिश्ता टूटने पर मुआवजा मिल सकता है।
हालांकि छह साल तक लिव इन में रहने के बाद अपने पार्टनर अमित मेहरा के साथ शादी करने वाली सेमंती सिन्हा रे तर्क देती है, मुझे समझ में नहीं आता कि किसी वयस्क व्यक्ति को दूसरे के साथ रहने के लिए अनुमति लेनी पड़ती है, जबकि वे समाज को अनावश्यक रूप से परेशान नहीं कर रहे हैं। एक साथ रहने का मतलब हर रात ड्रिंक या व्यभिचार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के निरीक्षण में सामने आया है लिव इन में रह रहे जोड़े की अपेक्षा शादीशुदा जोड़ों में अधिक समस्या आती है।
पिछले तेरह सालों से लिव इन में रह रहीं संध्या गोखले मानती है कि कानूनी बाध्यता से महिलाओं का शोषण रोकने में काफी सहायता मिलेगी। मुंबई में रहने वाली सॉफ्टवेयर कंसलटेट संध्या कहती है, इससे उन्हें संपत्तिके साथ ही गुजारे भत्तो का अधिकार मिलेगा। इसे आप इस तरह से भी ले सकते है कि मौजूदा विवाह व्यवस्था महिलाओं के लिए अधिक उपयुक्त नहीं है।

[सिम्पली दिल दा मामला है]
आयुष मल्होत्रा और साक्षी कपूर की प्रेम-कहानी बिल्कुल किसी बॉलीवुड रोमांस की तरह है। इसकी शुरुआत कॉलेज में रैगिंग सेशन से हुई जहां आयुष साक्षी के सीनियर थे। कॉलेज के टर्म गुजरने के साथ ही उनका रिश्ता गहराता चला गया। डिग्री लेते-लेते वे पूरी तरह से करीब आ चुके थे।
कॅरियर उन्हे गुड़गांव ले आया जहां दोनों ने लिव इन रिलेशनशिप में रहने का फैसला लिया। गुड़गांव में आयुष का एक अपार्टमेंट है इसलिए दोनों को घर खोजने के कटु अनुभवों का सामना नहीं करना पड़ा। यह जोड़ा एक मामले में और भाग्यशाली था। कारण, उनके परिवार वालों ने उन्हें अपने ढंग से जीने की आजादी दे रखी थी। जहां तक कानूनी स्वीकार्यता की बात है दोनों ने कभी इस बात की चिंता ही नहीं की। वे कहते है कि दो लोगों का एक साथ रहना नितांत निजी मामला है इसके लिए किसी कानूनी स्वीकार्यता की आवश्यकता नहीं है।
कंस्ट्रक्शन का बिजनेस करने वाले आयुष कहते है, साथ रहने के लिए आपसी समझ और अनुकूलता सबसे महत्वपूर्ण है। हालांकि काल सेंटर में एक्जीक्यूटिव साक्षी के अनियमित काम के घंटों के कारण दोनों केवल सप्ताहांत में ही एक दूसरे के लिए समय निकाल पाते है। आयुष हंसते हुए कहते है, हम दोनों लंबा समय ऑफिस में बिताते हैं, खूब खाते है और महीने के अंत तक बिल्कुल कंगाल भी हो जाते है।
शादी के बारे में अभी इन्होंने चर्चा भी नहीं की है। इसके बावजूद दोनों समाज के व्यवहार से बिल्कुल बेखबर भी नहीं है। मल्होत्रा कहते है, लोगों की धारणा है कि लिव इन में रहने वाले लोग केवल मस्ती के लिए एक साथ रहते है। इसे दो लोगों द्वारा समाज के सख्त रवैए और झूठी नैतिकता के विरुद्घ आपसी सहमति से उठाए गए कदम के रूप में लेना चाहिए।

[उलझते मुद्दे]
क्या सभी लिव इन रिलेशनशिप की परिणति शादी ही होती है? डॉ. रचना कहती है, इन रिश्तों में जी रहे लोगों के दिमाग में तो ये रहता है, पर रिश्ता टूटने असर महिलाओं पर अधिक पड़ता है। पति के साथ एंप एंजल्स नामक प्रोडक्शन कंपनी चला रही सेमंती कहती है, शुरुआती मुलाकातों में ही हमें महसूस हो गया था कि हम एक-दूसरे के लिए ही बने है। छह साल तक हम साथ रहे। हमारे अभिभावकों ने सलाह दी कि जब हम स्थाई रिश्ते में हैं, तो हमें होने वाले बच्चों की खातिर शादी कर लेनी चाहिए, इसलिए हमने शादी कर ली। इससे हमारे जीवन में कोई ज्यादा बदलाव नहीं आया बस हमें एक माता-पिता और मिल गए।
कुछ जोड़े अभिभावकों के दबाव में शादी करते है, तो कुछ सामाजिक स्वीकार्यता पाने के लिए। इसके बावजूद बहुत सारे जोड़े शादी की संस्था के खिलाफ जाकर लिव इन में ही रहना पसंद करते है। संध्या और उनके मानवाधिकार अधिवक्ता पार्टनर मिहिर देसाई ने 13 साल तक लिव इन में रहने के बावजूद शादी की कोई योजना नहीं बनाई है। वह कहती है, मैं विवाह संस्था के खिलाफ हूं। यह बराबरी पर आधारित नहीं होती है। शादी में महिलाओं को बलिदान करने वाली भूमिका निभानी पड़ती है। अधिकतर लिव इन के रिश्तों के शादी में बदलने का कारण समाज से टकराव के बजाय सामाजिक रूप से आसान जिंदगी पाना है।

[माइनस प्वांइट]
* लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या घर खोजने में आती है। उन्हें अपने रिश्ते के बारे में झूठ बोलना पड़ता है। कई मकान मालिक भी अब चालाकी दिखाते हुए मैरिज सर्टिफिकेट दिखाने की मांग करने लगे है।
* अपने लिए रहने की एक वैकल्पिक व्यवस्था भी करनी पड़ती है। कारण, अक्सर रिश्तेदारों के आने का खतरा भी रहता है।
* टिप्पणियों और आपको देखकर दबी हँसी हँसने वाले चेहरे देखने के लिए तैयार रहे।

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