Tuesday, May 11, 2010

माँ तो बस माँ है


लबोँ पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे खफा नहीं होती॥
तमाम उम्र सलामत रहे दुआ है मेरी
हमारे सिर पे हैं जो हाथ बरकतोँ वाले।

माँ के आगे यूँ कभी खुलकर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती।

मुझे भी उसकी जुदाई सताती रहती है
उसे भी ख्वाब में बेटा दिखाई देता है।

ऐ अँधेरे! देख ले, मुँह तेरा काला हो गया
मां ने आँखें खोल दीं, घर में उजाला हो गया।

इस तरह मेरे गुनाहोँ को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।

घेर लेने को मुझे जब भी बलाएँ आ गईं
ढाल बनकर सामने माँ की दुआएँ आ गईं।

मेरी ख्वाहिश है कि फिर से फरिश्ता हो जाऊँ
मां से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ।

माँ तुम्हारे जाने के बाद
आता नहीं याद,
मैं कितना रोया, किसकी गोद सोया,
नखरे छूटे, जिद भी भूला,
टूटा पालना, फिर न झूला।
मेरे शिल्पी ने लौदा छोड़ा,
वक्त ने उसको जीभर तोड़ा

तुम होती, तो जाने क्या होता
हाँ ये तस्वीर रंगीन होती
और जिंदगी भी।
है न???

अश्क अर्जी लगते हैं
कि ये लम्हे मुसलसल हों
कि बच्चे जब खुलकर हँसते हैं
तो माँओं की आँखें भीग जाती हैं॥
मेरी कोशिश जिसे मुश्किल समझ के छोड़ देती है
माँ की सोच उसे सुलझाने वहाँ तक दौड़ जाती है
गजब का हुनर है कि पढ़कर मेरा चेहरा
लफ्ज़-दर-लफ्ज़ माँ सबका सब बोल जाती है॥
यकीनन तो कभी सख्त पिता की तरह लगती है
तभी तो माँ की डाँट दुआ की तरह लगती है
खुदा में बस थोड़ा अहसास माँ सरीखा है
ऐसा नहीं कि माँ खुदा की तरह लगती है॥

दुनिया में बस एक ही खूबसूरत बच्चा है। और वह हर माँ के पास है।

बच्चे के साथ ही जन्म लेती है माँ। पहले वह थी ही कहाँ? वह तो स्त्री ही थी। माँ का दर्जा तो उसे बच्चे से ही मिलता है।

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