घडी कोई दूकान हो, जहा वक़्त बिकता हो,
तो बीतने वाले पल खरीद लाओ,
घडी कोई मकान हो, जहा वक़्त क़ैद हो,
तो सारे खिड़की दरवाज़े खोल आओ,
घडी कोई रास्ता हो, जहा वक़्त चल न पाए,
तो ज़रा सहारा दो उसे,
घडी कोई रेल हो, जिसपर वक़्त चढ़ना न चाहे,
तो जबरन लाद दो उसे,
घडी गर गिल्ली मिटटी हो, जिसमें वक़्त छुपा हो,
तो आकार दो उसे,
घडी कोई वजह हो, जिसकी आड़ में वक़्त अलसाए,
तो नकार दो उसे,
तुम्हारा मेरे पास न होना तुम्हारी मजबूरी होगी,
पर तुम कुछ तो करो जिस से के मेरा वक़्त कटे|
Posted by Narendra Jangir
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